वादी-ए-क़ल्ब के हालात तुम्हें क्या मा'लूम किया सितम ढाते हैं जज़्बात तुम्हें क्या मा'लूम तुम ने हर वक़्त ही ख़ुशियों के उजाले देखे ग़म की होती है सियह रात तुम्हें क्या मा'लूम मेरे अशआ'र उठाते हैं सवालात मगर ख़ाक तुम दोगे जवाबात तुम्हें क्या मा'लूम तुम हमें भूल गए ऐश-ओ-तरब में लेकिन हम ने भूली न कोई बात तुम्हें क्या मा'लूम तुम ने दी है वो मोहब्बत में दग़ा क्या जानो प्यार को कैसे मिली मात तुम्हें क्या मा'लूम ख़ुश्क होंटों ने जब अल्लाह-निगहबान कहा कैसे आँखों ने की बरसात तुम्हें क्या मा'लूम तुम तो शादाँ थे कि बस हार गया है 'मक़्सूद' किस की दर-अस्ल हुई मात तुम्हें क्या मा'लूम