वो यार हम से ख़फ़ा है तो हो हुआ सो हुआ फिर उस का क़िस्सा ही क्या जाने दो हुआ सो हुआ अगर रक़ीब शरारत से बाज़ नहीं आता बला से अपनी कुएँ में पड़ो हुआ सो हुआ हर इक बात में तुम क्यूँ उलझते हो यारो देखो ये मुफ़्त गधे मत चढ़ो हुआ सो हुआ ये सारा क़ज़िया तो हम से है इस से तुम को क्या तुम अपने एक तरफ़ हो रो हुआ सो हुआ हम अपना आप ही कर लेंगे इंफ़िआल उस से हमारे बीच कोई मत पड़ो हुआ सो हुआ ये सब लड़ाने की बातें हैं तुम जो करते हो ज़रा तो ख़ैर का कलिमा कहो हुआ सो हुआ हमीं तो यार सिवा अपने तईं करे काम बुरा किसी को लगे तो लगो हुआ सो हुआ रंगा है अब तो ज़माने ने रंग ये लाल ज़र्द दिखाई करो हुआ सो हुआ गिराँ हूँ से तिरी 'नयन' पेश नहीं जाती तो फेर बे-हूदा क्यूँ बकते हो हुआ सो हुआ