मसरूफ़ हर घड़ी है जो अपनी अना के साथ कैसे मिले वो आत्मा परमात्मा के साथ हर बार कुछ तलब भी है हम्द-ओ-सना के साथ ये बंदगी है या कि तिजारत ख़ुदा के साथ अच्छे-बुरे का इल्म ही तुझ को नहीं है जब मत छेड़-छाड़ कर तू ख़ुदा की रज़ा के साथ माना तू ऐ तबीब है अपने हुनर में ताक़ लब पे दुआ भी चाहिए दस्त-ए-शिफ़ा के साथ सूरज नहीं कि डर के मैं बादल में जा छुपूँ दीपक हूँ लड़ मरूँगा मुख़ालिफ़ हवा के साथ तन तो क़बा है तन से है हस्ती तिरी जुदा इतना है क्यों लगाव पुरानी क़बा के साथ दैर-ओ-हरम के शोर में मुमकिन नहीं 'सदा' ख़ल्वत में चल के मिलते हैं आओ ख़ुदा के साथ