मस्त-ए-शराब-ए-नाज़ पर शिकवे का कुछ असर नहीं मेरी ख़बर हो क्या उन्हें अपनी जिन्हें ख़बर नहीं गर्दिश-ए-रोज़गार से ख़ौफ़ मुझे हुआ ही कब सैल-ए-अलम से बह सके पहलू में वो जिगर नहीं गोद में हादसात के पल के ही मैं जवाँ हुआ वो नहीं ज़िंदगी क़ुबूल जिस में कोई ख़तर नहीं मंज़िल-ए-इश्क़ में मुझे आए तो सख़्त मरहले बढ़ना नहीं है सहल अगर रुकना भी सहल-तर नहीं मैं हूँ यहाँ भी बे-क़रार था मैं वहाँ भी बे-क़रार दिल की दवा उधर न थी दिल की दवा इधर नहीं घिर के घटा उठी अभी छट भी गई अभी 'हबीब' मेरी शब-ए-फ़िराक़ की दहर में क्या सहर नहीं