मिरे दिल में गर्दिश-ए-वक़्त के कई दौर ऐसे गुज़र गए कि जो उभरे नक़्श थे मिट गए जो मिटे निशाँ थे उभर गए ज़रा अहद-ए-माज़ी को झाँक लूँ ज़रा मोड़ के पीछे भी देख लूँ मिरा कारवाँ था वो क्या हुआ मिरे हम-सफ़र वो किधर गए वहीं याद आती हैं सूरतें वही धुँदली सी मूरतें वही ढूँडता हूँ मैं नक़्श-ए-पा कि जो रहगुज़र में बिखर गए है वही तो हासिल-ए-ज़िंदगी मुझे अब भी उन पे ही नाज़ है मिरी ज़िंदगी के वो रात दिन तिरी याद में जो गुज़र गए न रहा वो पहला सा राब्ता नहीं दिल से दिल को वो वास्ता लिया नाम तेरा किसी ने जब कई दाग़ दिल के उभर गए मिरे जाम क़ल्ब-ओ-जिगर के थे किसी लहज़ा ख़ाली न रह सके लिया नाम तेरा किसी ने जब कई दाग़ दिल के उभर गए मिरे साज़-ए-दिल ज़रा जाग अब मुझे सोए हो गईं मुद्दतें ये किनारा दिल का ख़मोश है यहाँ कब के तूफ़ाँ उतर गए इन्हीं जाँ-फ़ज़ा मिरे नग़्मों का ऐ 'हबीब' हश्र ये क्या हुआ कभी घुट के दिल में ही रह गए कभी लब पे आ के बिखर गए