मत पूछ हर्फ़-ए-दर्द की तफ़्सीर कुछ भी हो वो ख़्वाब ला-जवाब था ता'बीर कुछ भी हो हर नक़्श को मिटा के गुज़रती रही हवा लौह-ए-जहाँ पे वक़्त की तहरीर कुछ भी हो बेहतर नहीं कि तुझ को मिले काग़ज़ी लिबास रंगों का इम्तिज़ाज है तस्वीर कुछ भी हो जब हुक्म हो गया है कि नाला-ब-लब रहें फिर वहम क्या है ज़हर की तासीर कुछ भी हो मेरे लिए ज़मीं का तसव्वुर है आसमाँ पाबंद हूँ हवाओं का तक़दीर कुछ भी हो मस्लक यही था शहर की बुनियाद रख चले इस से ग़रज़ नहीं है कि ता'मीर कुछ भी हो छाया हुआ है अर्ज़-ओ-समा पर मिरा शुऊ'र 'शाहिद' करेंगे ज़ेहन की तस्ख़ीर कुछ भी हो