मौसम-ए-ग़म गुज़र न जाए कहीं शब में सूरज निकल न आए कहीं अपनी तन्हाइयाँ छुपाने को बुत बनाए सनम गिराए कहीं वो सरापा है ख़्वाब ख़ुश्बू का झोंका झोंका बिखर न जाए कहीं डर ये कैसा हुआ सफ़र में मुझे रास्ता ख़त्म हो न जाए कहीं क्या बताऊँ वो क्यूँ परेशाँ है मुझ को ढूँडे कहीं छुपाए कहीं सब इसी धुन में भागे जाते हैं कोई आगे निकल न जाए कहीं बा'द मुद्दत के तू मिला है 'निज़ाम' डर है फिर से बिछड़ न जाए कहीं