सर में सौदा नज़र आता है ख़ुदा ख़ैर करे घर भी सहरा नज़र आता है ख़ुदा ख़ैर करे आज बिगड़े हुए तेवर हैं कुछ उन के यारो हम को क्या क्या नज़र आता है ख़ुदा ख़ैर करे है बला-ख़ेज़ फिर इक बार तमव्वुज दिल में ख़ूँ बरसता नज़र आता है ख़ुदा ख़ैर करे हम से कहते हो अँधेरों को उजाले समझो शब-परो क्या नज़र आता है ख़ुदा ख़ैर करे आज क्या उन के तसव्वुर में बहेंगे फिर अश्क ग़म का दरिया नज़र आता है ख़ुदा ख़ैर करे था जिगर तिश्ना-ए-फ़रयाद तो दम घुटता था दिल भी प्यासा नज़र आता है ख़ुदा ख़ैर करे सामने थे तो नज़र रुख़ से नहीं हटती थी अब तो पर्दा नज़र आता है ख़ुदा ख़ैर करे छूट थी जल्वा-ए-पैहम की तो अंधेर सा था अब अंधेरा नज़र आता है ख़ुदा ख़ैर करे हम को इन सर-ब-फ़लक क़स्र-ओ-इमारात के गिर्द ग़म का डेरा नज़र आता है ख़ुदा ख़ैर करे ‘नक़वी’-ए-तिश्ना-जिगर की भी बुझेगी कभी प्यास अब तो मरता नज़र आता है ख़ुदा ख़ैर करे