मावरा-ए-नज़र गुमाँ क्या है कुछ नहीं है जहाँ वहाँ क्या है कुछ तो गुज़रा है पानियों जैसा आबदीदा सी चश्म-ए-जाँ क्या है इज्ज़-ए-गुल है शिकस्त-ए-ख़ुशबू है और आज़ार-ए-गुल्सिताँ क्या है एक ऐसी है गंदुमी दलदल सोचता हूँ ये नक़्द-ए-जाँ क्या है ये ख़म-ए-ज़ुल्फ़ राएगानी है कुछ न कहिए तो राएगाँ क्या है मुझ पे साया है ला-मकानी का वर्ना मैं क्या मिरा मकाँ क्या है