नफ़रत क़ुबूल जो मिले थोड़ा सा प्यार भी पहलू में गुल के शाख़ पे होते हैं ख़ार भी सब पर हुआ अयाँ मिरा हाल-ए-शिकस्त-ए-दिल जब तक थे अश्क आँखों में थे राज़दार भी आ जा कि है फ़सुर्दा हर इक गुल तिरे बग़ैर है किस क़दर उदास ये फ़स्ल-ए-बहार भी उम्मीद ख़त्म तार-ए-नफ़स टूटने लगा कब साथ छोड़ दे ये तिरा इंतिज़ार भी वहशत ने नोच डाला मिरे जिस्म का लिबास बाक़ी रहे कहाँ वो गरेबाँ के तार भी होती नहीं क़ुबूल मिरी कोई भी दुआ शायद कि है ख़फ़ा मिरा परवरदिगार भी 'राही' मिलेगी मंज़िल-ए-मक़्सूद क्या ख़बर है क़ाफ़िले की राह में गर्द-ओ-ग़ुबार भी