मेरा जुनून मेरी फ़िरासत के सामने साया-फ़गन बना है तमाज़त के सामने औक़ात क्या बताऊँ तुम्हें इस जहान की तुर्फ़ा-तमाशा है मिरी वहशत के सामने हम ने ख़ुदा की राह में सर तक कटा दिया झुकना किया क़ुबूल न ज़ुल्मत के सामने सर पर सदाक़तों के हसीं ताज हैं मगर मुजरिम हमीं बने हैं अदालत के सामने महबूबियत वफ़ा की हक़ीक़त है दोस्तो दुनिया झुकी हुई है मोहब्बत के सामने ख़ामोश क्यों हैं तेरे लब-ए-आरज़ू ऐ 'शाद' बेचैन धड़कनों की समाअ'त के सामने