मेरा ख़ुदा हो मुझ मुई नाशाद की तरफ़ अम्माँ भी बोलती हैं तो दामाद की तरफ़ औलाद भूखों मरती है घर में सफ़ाई है झाड़ू-फिरा चला गया बग़दाद की तरफ़ जन्नत की आरज़ू थी वो दुनिया से उठ गई अब जा के क्या करूँ मुए शद्दाद की तरफ़ क्या जाने किस ने डाल दिया उस के दिल में बल मुड़ कर भी देखता नहीं औलाद की तरफ़ मुंसिफ़ निगोड़ा देख के रंडी फिसल पड़ा भड़वे को क्या ख़याल हो रूदाद की तरफ़ घुटना झुका तो अपनी ही जानिब झुका बहन समधन भी बोलने लगीं दामाद की तरफ़ इस मौत से किसी को नहीं ऐ बहन नजात लाई है घेर घेर के जल्लाद की तरफ़ मुँह पर तो दो ही आँखें हैं पहलू तिरे हज़ार अब तुझ को देखूँ या तिरी ईजाद की तरफ़ सदमे पे सदमे देता है दिन रात मर्दुआ 'शैदा' कभी न जाऊँगी जल्लाद की तरफ़