न बाप माँ से न बाजी चची चचा से ग़रज़ ग़रज़ है अपनी तो उस बे-ग़रज़ ख़ुदा से ग़रज़ निगोड़े मर्दों को लंदन की सैर भाई है न उन को का'बे से मतलब न कालका से ग़रज़ न ज़िंदगी को मैं जानूँ न मौत को जानूँ न इब्तिदा से ग़रज़ है न इंतिहा से ग़रज़ ख़ुदा को काम है बंदों की आज़माइश से नमाज़ रोज़े से मतलब न इल्तिजा से ग़रज़ ख़सम छुड़ा किसी भड़वे का मुँह नहीं देखा हया को काम है हम से हमें हया से ग़रज़ हुआ है बीबियो पैदा वली के घर शैतान रसूल से जिसे मतलब न कुछ ख़ुदा से ग़रज़ ये तज के बैठी हैं 'शैदा' पे दीन दुनिया को ख़सम से काम है इन को न आश्ना से ग़रज़