मेरा लब-ए-ख़मोश अगर इल्तिजा करे शायद तिरी निगाह-ए-करम ए'तिना करे अल्लाह ज़ोर-ए-बे-असरी का भला करे यकसाँ है कोई नाला करे या दुआ करे दिल ए'तिमाद-ए-वादा-ए-सब्र-आज़मा करे काम अपना तेरी शोख़ी-ए-ताक़त-रुबा करे उस का शबाब जोश पे आए ख़ुदा करे दिल ज़िंदगी से हाथ उठा कर दुआ करे गर हो सके तो इतना शहीद-ए-जफ़ा करे तेग़-ए-निगाह-ए-यार के हक़ में दुआ करे परवाना दौर-ए-गर्द-ए-बिसात-ए-उमीद हो दर-पर्दा शम्अ'-ए-बज़्म-ए-मोहब्बत जला करे ईज़ा-कुशी का दौर बहार-ए-हयात है दिल अपना गुल-फ़रोशी-ए-दाग़-ए-जफ़ा करे कुछ इख़्तियार भी है जो मजबूरियाँ हैं कुछ इस कश्मकश में कहिए तो इंसान क्या करे पहुँचे ये अर्श पर भी तो परवा न हो उन्हें कहिए तो नाला मेरा रसा हो के क्या करे आह-ए-फ़लक-रसा से तो कुछ भी न हो सका शायद कि कुछ बुलंदी-ए-दस्त-ए-दुआ' करे मजबूरी-ए-अतम में है ज़ोर इख़्तियार का जो काम मुझ से हो न सके वो ख़ुदा करे क़ुरआन में लिखा है जो ला-तक़्नतू सरीह ज़ौक़-ए-निगाह कहिए तो क्यूँकर ख़ता करे क्यों छेड़ें शोख़ियाँ दिल-ए-शोरिश-पसंद को क्यों बैठे बैठे कोई क़यामत बपा करे फिर दाम में फँसूँगा कि मैं सैद-ए-शौक़ हूँ सय्याद मश्क़ के लिए मुझ को रिहा करे लब आश्ना-ए-आरज़ू-ए-दिल कभी न हो और माजरा-ए-इश्क़ का क़िस्सा हुआ करे 'बेदिल' जो मस्त हो ख़बर-ए-फ़स्ल-ए-गुल से वो दावा-ए-पारसाई-ए-बे-सर्फ़ा क्या करे