मेरा तो क्या ख़ुशी में रहूँ या मलाल में तुम ख़ुश रहो जहाँ भी रहो जिस ख़याल में हूँ महव मैं तो ऐसा किसी के ख़याल में कुछ इम्तियाज़ ही नहीं हिज्र-ओ-विसाल में तेरे ख़याल ही की बदौलत है ज़िंदगी तू है तो इक जहान है मेरे ख़याल में हाइल अगर हज़ार हों पर्दे तो कुछ नहीं तुम हो मिरी निगाह में दिल में ख़याल में होता रहे करम जो यूँही ऐ ख़याल-ए-यार लग़्ज़िश न हो कभी मिरे पाए-ए-ख़्याल में है तू तो हर घड़ी मिरी आँखों के सामने आता हूँ मैं भी क्या कभी तेरे ख़याल में शेर-ओ-सुख़न की 'आरज़ू' अब दाद क्या मिले ज़ौक़-ए-सुख़न ही जब नहीं अहल-ए-कमाल में