मिरा वजूद वही है तिरी कहानी में कि जैसे मछलियाँ पलती हैं यार पानी में लबों की चाशनी है आज तक वही की वही तुम्हारा नाम लिया था कभी रवानी में बिछड़ के उस से किसी और से मिला था मैं बदल के शक्ल वो आया था ज़िंदगानी में मैं उस के जिस्म की ख़ुशबू को ढूँढता ही रहा न वो गुलाब में पाई न रात रानी में किसी को अंधे कुएँ में अमान बख़्शी है किसी की जान बचाई है बहते पानी में सुख़न की बारिशें होती हैं आज तक 'काशिफ़' किसी का शेर सुना था कभी जवानी में