मिरे आगे वो सूरत आ रही है निगाह-ए-आरज़ू थर्रा रही है सदा-ए-ज़िंदगी ये आ रही है तमन्ना आज़माई जा रही है तवज्जोह से सुनो तुम नग़्मा-ए-इश्क़ हमारी आरज़ू कुछ गा रही है ज़रा सहरा-नवर्दी कीजिए फिर हमें वहशत यही समझा रही है इलाही हो दिल-ए-बेताब की ख़ैर किसी की याद फिर तड़पा रही है बढ़ा जाता है दरमाँ से मिरा दर्द सदा-ए-दिल ये पैहम आ रही है रुख़-ए-रंगीं किसी का है नज़र में बहार-ए-ज़िंदगी इतरा रही है मशिय्यत नाम है ताक़त का शायद अबस ग़ैरत तिरी शर्मा रही है तसव्वुर और फिर लुत्फ़-ए-तसव्वुर हमें तो नींद इस से आ रही है निगाह-ए-नाज़ को जुम्बिश तो फिर दो न जाने क्यों अदा ये भा रही है हयात-ओ-मौत की इस कश्मकश को अजल भी देख कर घबरा रही है सुनाऊँ दास्तान-ए-ज़िंदगी क्या मुसीबत पर मुसीबत आ रही है सँभल जाए तबीअत ग़ैर मुमकिन तमन्ना क्यों इसे बहला रही है मुबारक हो नवेद-ए-मर्ग तुम को हमारी बे-कसी ये गा रही है हवा-ए-रंज की तासीर देखो मसर्रत की कली कुम्हला रही है करूँ सैर-ए-बयाबाँ अब 'वफ़ा' मैं मिरी वहशत मुझे ले जा रही है