मेरे दिल के ये दाग़ सारे हैं आसमाँ पर जो चाँद तारे हैं क्या निराले हैं खेल उल्फ़त के जीतने वाले खेल हारे हैं वही समझेंगे कुछ मुसीबत को जिस ने रो रो के दिन गुज़ारे हैं जिन को ग़ैरों के साथ देखा है कैसे कह दें कि वो हमारे हैं हर तरह जो वतन के काम आएँ वो वतन में ही बे-सहारे हैं कल जहाँ शाख़-ए-आशियाना थी आज कुछ राख कुछ शरारे हैं आसमाँ जगमगाता था जिन से मेरी आहों के वो शरारे हैं हू का आलम है चार सम्त 'रियाज़' गर्दिश-ए-वक़्त के नज़ारे हैं