मुसहफ़-ए-रुख़्सार पर ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ देख कर हूँ परेशाँ कुफ़्र के साए में ईमाँ देख कर ऐ सितम-ईजाद ऐ ग़ारत-गर-ए-सब्र-ओ-सुकूँ दिल परेशाँ है तिरी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ देख कर जोश-ए-वहशत में जो आ निकला मैं गुलशन की तरफ़ हँस पड़े हैं गुल मिरा चाक-ए-गरेबाँ देख कर मौज-ए-बहर-ए-ग़म से खेलें क्यों न आशुफ़्ता-मिज़ाज हिम्मत-ए-दिल और बढ़ जाती है तूफ़ाँ देख कर सिर्फ़ सब्ज़ा ही नहीं जौर-ए-ख़िज़ाँ से पाएमाल है कली भी मुज़्महिल रंग-ए-गुलिस्ताँ देख कर उन की याद आते ही दिल यूँ काँप उठता है 'रियाज़' जिस तरह चौंके कोई ख़्वाब-ए-परेशाँ देख कर