मेरे दिल की गहराइयों में उतर जिगर-सोज़ तन्हाइयों में उतर तू अपने बयाँ को मुअ'ल्लक़ न छोड़ फ़लक-दार सच्चाइयों में उतर मिरी नब्ज़-ए-इज़हार पर रख के हाथ तू एहसास की घाटियों में उतर सियह निय्यतों का उफ़क़ छोड़ कर महक-दार अच्छाइयों में उतर कोई रुख़ तो धारेगा दूल्हन का रूप हर इक रुख़ की अंगड़ाइयों में उतर 'सबा' तू लिए हौसलों की बरात तजस्सुस की शहनाइयों में उतर