पेड़ बेवा हो गए और पत्तियाँ सब उड़ गईं मुस्कुराते मौसमों की धज्जियाँ सब उड़ गईं दफ़्न जब से हो गई हैं अज़्मतें पहचान की चाहतें हैं ख़ुश्क रिश्तेदारियाँ सब उड़ गईं बुलबुलों का चहचहाना है न खेतों की क़तार क्या लगा के पँख अपनी बस्तियाँ सब उड़ गईं नफ़रतों की आँच ने जब छू लिया है आसमाँ ज़िंदगी से आपसी हमदर्दियाँ सब उड़ गईं कल तलक थी हुक्म-रानी तीरगी की हर तरफ़ रौशनी आते ही घर की बत्तियाँ सब उड़ गईं इस क़दर ऊँची हुई हैं आदमिय्यत की लवें आसमाँ की सम्त ही परछाइयाँ सब उड़ गईं हर नए दिन धूप की किरनों से मिल कर क्यों 'सबा' नीम-बाज़ आँखों से शब की मस्तियाँ सब उड़ गईं