मेरे दिल को वो बुत-ए-दिल-ख़्वाह जो चाहे करे अब तो दे डाला उसे अल्लाह जो चाहे करे शैख़ की मंतिक़ हो या चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़-ए-बुताँ सीधा-सादा हूँ मुझे गुमराह जो चाहे करे देख कर पोथी बरहमन कहते हैं इस 'अह्द में शादी तो आसाँ नहीं हाँ ब्याह जो चाहे करे ख़र्च की तफ़्सील पूछूँगा न माँगूँगा हिसाब ले ले वो बुत कुल मिरी तनख़्वाह जो चाहे करे अच्छे अच्छे फँस गए हैं नौकरी के जाल में सच ये है अफ़्ज़ूनी-ए-तनख़्वाह जो चाहे करे बा-असर होना तो है मौक़ूफ़ दिल के रंग पर जोश में यूँ आ के 'अकबर' आह जो चाहे करे