मेरे ही आस-पास हो तुम भी इन दिनों कुछ उदास हो तुम भी बारहा बात जीने मरने की एक बिखरी सी आस हो तुम भी सैल-ए-नग़्मा पे इतनी हैरत क्यूँ इस नमी से शनास हो तुम भी मैं भी डूबा हूँ आसमानों में ख़्वाब में महव-ए-यास हो तुम भी मैं हूँ टूटा सा पैमाना एक ख़ाली गिलास हो तुम भी गर मैं दुख से सजा हुआ हूँ तो रंज से ख़ुश-लिबास हो तुम भी अपनी फ़ितरत का मैं भी मारा हूँ अपनी आदत के दास हो तुम भी मेरी मिट्टी भी रेत की सी है और सहरा की प्यास हो तुम भी