मेरे लिए क्या शोर भँवर का क्या मौजों की रवानी मेरी प्यास के साहिल तक है तेरा बहता पानी सारे इम्कानात में रौशन सिर्फ़ यही दो पहलू एक तिरा आईना-ख़ाना इक मेरी हैरानी आज हूँ मैं अपने बिस्तर पर करवट करवट बोझल मेरी नींद से आ कर उलझी इक बे-रंग कहानी मिलना-जलना रस्म ही ठहरा फिर क्या शिकवा-शिकायत ताज़ा ज़ख़्म कोई दे जाओ छोड़ो बात पुरानी मैं हूँ इक दिलचस्प तमाशा दुनिया है इक मेला मेरा चेहरा बन जाती है हर सूरत अन-जानी पंछी के दो परों के नीचे सिमटा सारा समुंदर अपने ज़र्फ़ की गहराई में डूब गई तुग़्यानी आज चलो आवारा फिरें हम शहर में गलियों गलियों 'रम्ज़' हो कुछ तुम भी मन-मौजी हम भी हैं सैलानी