मेरे क़दमों से इक रहगुज़र बाँध कर छीन ली उस ने मंज़िल सफ़र बाँध कर क्या ज़मीं देखना क्या फ़लक देखना उस ने छोड़ा मुझे मेरे पर बाँध कर उम्र-ए-रफ़्ता की यादें सँभाले हुए घर से निकली हूँ नज़रों में घर बाँध कर मेरी नज़रों में जचता न था ये जहाँ उस ने जादू किया था नज़र बाँध कर इक रिवायत नई डालनी है मुझे मिस्रा-ए-तर में भी चश्म-ए-तर बाँध कर मेरे रब ने मुझे मो'तबर कर दिया मेरे नोक-ए-क़लम से हुनर बाँध कर