मेरे सपनों की मस्त पुरवाई मेरी ख़ातिर तुझे बुला लाई इक तिरे इंतिज़ार में बैठे हो चली शाम धूप सँवलाई सात-रंगी धनक को जब देखा आ गई याद तेरी अंगड़ाई तेरी यादें लिपट गईं मुझ से बाँसुरी की जो तान लहराई खुल गईं इक ज़रा लटें तेरी कितनी ख़ुशबू पवन उड़ा लाई जब भी जीवन में कोई मोड़ आया मैं ने क्यों तेरी ही कमी पाई काँप उट्ठा हूँ मैं वहीं 'मग़मूम' प्यार की जोत जब भी थर्राई