मेरी आँखों का ख़्वाब था कोई रूह का इज़्तिराब था कोई है फ़क़त आज दिल में तन्हाई कल तलक बे-हिसाब था कोई चाँद ग़ैरत से छुप गया कल भी छत पे फिर बे-नक़ाब था कोई हम जिसे चूम कर हुए ज़ख़्मी ख़ार जैसा गुलाब था कोई उन की महफ़िल में जो हुआ रुस्वा हम सा ख़ाना-ख़राब था कोई क्यूँ ये 'ज़ुहैब' चढ़ गया सूली इश्क़ का इंक़लाब था कोई