मेरी आँखों से ख़्वाब ले के गया नींद भी महताब ले के गया छोड़ कर तीरगी में क्यों मुझ को वो मिरा आफ़्ताब ले के गया मैं ने ग़ीबत जो की थी उस की कभी बदले मेरा सवाब ले के गया दे के मुझ को वो हिज्र की रातें मेरा हुस्न-ए-शबाब ले के गया मुझ को ख़ंजर दिखा के वो 'अहमद' मेरे दिल की किताब ले के गया