मेरी आवाज़ को न क़ैद करो अज़्म-ए-परवाज़ को न क़ैद करो है रविश मेरी ज़ख़्म-ए-दिल लिखना मेरे अंदाज़ को न क़ैद करो किसी अंजाम-ए-बद के ख़दशे में हुस्न-ए-आग़ाज़ को न क़ैद करो तुम नज़र को चुरा के यूँ मुझ से इक हसीं राज़ को न क़ैद करो है मुक़य्यद ये ज़ात रस्मों में दिल-ए-जाँ-बाज़ को न क़ैद करो