मिरी बात सुन मिरे हम-नफ़स मिरे साथ अब तू वफ़ा न कर मैं चराग़ हूँ जो बुझा हुआ मुझे रौशनी की दुआ न कर मैं वो अश्क हूँ जो गिरा नहीं मैं वो दर्द हूँ जो हुआ नहीं मिरा ज़र्फ़ मुझ से है कह रहा मिरे ज़ख़्म की तू दवा न कर तिरी आरज़ू में सँवर गया तिरी जुस्तुजू में बिखर गया तिरी साज़िशों में जो राज़ है तू कभी भी उस को कहा न कर मिरा हम-सफ़र भी रहा है तू मिरी हर ग़ज़ल में छुपा है तू मिरी धड़कनों से तू आ के मिल मुझे रहगुज़र में मिला न कर ये समझ ले 'सरवर'-ए-ग़म-ज़दा वो रहीम है वो करीम है जो लिखा है उस ने नसीब में कभी उस का शिकवा गिला न कर