मेरी बेताबी की उस दिल को ख़बर क्यूँकर हो आह का दोस्तो पत्थर में असर क्यूँकर हो न सिरी इस में न पैकान जो खींचूँ उस को दिल से बाहर ये मिरा तीर-ए-नज़र क्यूँकर हो एक दम तुझ से जो होते थे जुदा रोते थे सब्र दूरी में तिरी आठ पहर क्यूँकर हो हम-नशीं शग़्ल न होवे जो हमें रोने का तो भला हिज्र में औक़ात बसर क्यूँकर हो जेब सीता है तो क्या ये तो बता ऐ नासेह चाक हो जावे तो पैवंद-ए-जिगर क्यूँकर हो शम्अ' साँ जल के बुझे तो भी न देखा उस ने क्या करें अब मुतवज्जह वो इधर क्यूँकर हो अल-अमाँ देख के दिलबर को मलक कहते हैं आह फिर ओहदा-बरा इस से बशर क्यूँकर हो तू रहे ग़ैर के आग़ोश में जब सारी रात फिर तो राहत हमें ऐ रश्क-ए-क़मर क्यूँकर हो न वो रंगत है न वो उस में नज़ाकत प्यारे तेरे होंटों से मुशाबह गुल-ए-तर क्यूँकर हो अपने नज़दीक भी आने नहीं देता वो मुझे दिल में ऐसे बुत-ए-अय्यार के घर क्यूँकर हो टुक सँभाल अपने तईं फ़ाएदा घबराए से हिज्र की रात है 'अफ़सोस' सहर क्यूँकर हो