मिरी ही सम्त बढ़ी बर्क़-ए-बे-अमाँ की तरह नई बहार ने लूटा मुझे ख़िज़ाँ की तरह हमारे क़ामत-ए-बाला का क्या ख़िज़ाँ की तरह ज़मीं पे रहते हैं हम लोग आसमाँ की तरह क़फ़स को छोड़ दें सय्याद की ये ख़्वाहिश है क़फ़स में रहने लगे हम जो आशियाँ की तरह कहाँ रहेगा तुम्हारे ग़ुरूर का आलम फ़ुग़ाँ लबों पे अगर आ गई फ़ुग़ाँ की तरह तुम्हारे हुस्न की रानाइयाँ हमीं से हैं मिटाओ हम को न तुम हर्फ़-ए-दास्ताँ की तरह अब और पास-ए-वफ़ा इस से बढ़ के क्या होगा ज़बान रखते हुए हम हैं बे-ज़बाँ की तरह तलाश-ए-मंज़िल-ए-मक़्सद से बाज़ आएँगे उभर के बैठेंगे हम गर्द-ए-कारवाँ की तरह चमन में बर्क़ का क़िस्सा तमाम हो जाए हम आशियाँ को बनाएँ जो आशियाँ की तरह करूँ अदा मैं इनायत का शुक्रिया कैसे बड़े ख़ुलूस से मिलते हो राज़-दाँ की तरह पिला सको तो पिलाओ ख़ुलूस-ओ-रब्त के जाम जो मिल सको तो मिलो हम से मेहरबाँ की तरह 'वकील' एक क़दम अपना हट नहीं सकता जो इम्तिहान-ए-मोहब्बत हो इम्तिहाँ की तरह