मोहब्बत में वो हम को नाशाद कर के परेशाँ परेशाँ हैं बेदाद कर के वही हाँ वही जो हमें भूल बैठे बहुत रोए कल हम उन्हें याद कर के उसी के लिए मेरे लब पर दुआ है मुझे रख दिया जिस ने बर्बाद कर के मोहब्बत में वो दौर नज़दीक है फिर तड़प जाओगे तुम हमें याद कर के हुई दौलत-ए-ज़ब्त बर्बाद यूँ ही मिला क्या शब-ए-हिज्र फ़रियाद कर के नहीं आज तो कल रहूँगा यक़ीनन असीरों को ज़िंदाँ से आज़ाद कर के हुआ इक ज़माना तड़पते हैं अब तक किसी बे-मुरव्वत को हम याद कर के तुझे क्या मिलेगा ये गुलचीं से पूछें गुलिस्ताँ में फूलों को बर्बाद कर के 'वकील' अहल-ए-दिल सब तड़पते रहेंगे हमारी परेशानियाँ याद कर के