मिरी नज़र से परे मुझ से दूर कुछ तो है कि ख़त में आप के बैनस्सुतूर कुछ तो है मैं अपने इश्क़ से मायूस कैसे हो जाऊँ इसी दिए से मिरे दिल में नूर कुछ तो है मैं अपने आप से नज़रें चुरा रहा हूँ क्यों कि इस में राज़-ए-दिल-ए-ना-सुबूर कुछ तो है तिरा क़सीदा नहीं पढ़ रही है यूँ दुनिया तिरे वजूद के अंदर ज़रूर कुछ तो है ये राज़ आप की आँखें बयान करती हैं कि मुझ से आप को रंजिश हुज़ूर कुछ तो है ख़ुदा की ज़ात से वाक़िफ़ जो कर रहा है मुझे मिरा शुऊ'र है या ला-शुऊ'र कुछ तो है हर एक शख़्स से कतरा रहा हूँ ऐ 'मेराज' ये ज़ो'म है कि अना या ग़ुरूर कुछ तो है