मिटा के सारे यक़ीं के निशान रख देगा बदल के वो यूँ तुम्हारा जहान रख देगा तुम अपनी बात नहीं कह सकोगे दुनिया से तुम्हारे मुँह में वो अपनी ज़बान रख देगा वो नोच लेगा तुम्हारे तमाम बाल-ओ-पर उड़ान के लिए फिर आसमान रख देगा मनार-ओ-गुंबद-ओ-मेहराब तोड़ देगा वो बदल के नक़्शा-ए-हिन्दोस्तान रख देगा गुलों के हुस्न को रुस्वा करेगा हर-सू वो मिला के ख़ाक में गुलशन की शान रख देगा सितमगरों को नवाज़ेगा अपनी रहमत से फिर उन का नाम भी वो मेहरबान रख देगा वो मेरे जोश-ए-सफ़र पर करेगा शक 'मेराज' क़दम-क़दम पे मिरे इम्तिहान रख देगा