मेरी तक़दीर को कुछ और निखर जाने दे ठहर ऐ कातिब-ए-तक़दीर सँवर जाने दे दम तो ले गर्दिश-ए-अय्याम सितम क्यों इतना मंज़िल-ए-इश्क़ को बस पार तो कर जाने दे देखने वालों पे पाबंदी-ए-दीदार है क्यों रुख़-ए-महताब-नुमा तक तो नज़र जाने दे अश्क आँखों से निकलने को मचलते हैं मिरे चश्म-ए-महज़ूँ के ये मोती हैं बिखर जाने दे काली बदली में नज़र आने दे महताब ज़रा ज़ुल्फ़-ए-पुर-पेच से शानों को सँवर जाने दे ज़ख़्म गहरे अभी खाने की है ताक़त बाक़ी तीर जितने हैं प-ए-क़ल्ब-ओ-जिगर जाने दे शब-ए-तारीक में मुद्दत से भटकता है 'असद' यक क़दम उस को ज़रा सू-ए-सहर जाने दे