मिरी तलाश में हर शाम हर सहर आया मिरे वजूद में क्या जाने क्या नज़र आया न जाने कौनसा क़िस्सा कहा था दिलबर ने जो उन की बज़्म से आया वो चश्म-ए-तर आया उसी के नक़्श-ए-क़दम पर रवाँ ज़माना है वो नक़्श-ए-पा जो हर इक राह में उभर आया वजूद से मिरे इंकार करने वालों को हवादिसात ने घेरा तो याद फ़रमाया सिला ये हुस्न-ए-अमल का 'हिलाल' पाया है शजर जो हम ने उगाया वो बे-समर आया