मेरी तक़दीर में जलना है तो जल जाऊँगा तेरा वा'दा तो नहीं हूँ कि बदल जाऊँगा रहम आया न अगर तुझ को तो इक दिन मैं भी सर को रख कर तिरे क़दमों पे मचल जाऊँगा दर्द घबरा के ये कहता है शब-ए-फ़ुर्क़त में आह बन कर तिरे पहलू से निकल जाऊँगा सोज़-भर दो मिरे सीने में ग़म-ए-उल्फ़त का मैं कोई मोम नहीं हूँ जो पिघल जाऊँगा मुझ को समझाओ न 'साहिर' कि मैं इक दिन ख़ुद ही ठोकरें खा के मोहब्बत में सँभल जाऊँगा