मिरी उन की निगाहें मिल रही हैं नई उल्फ़त की राहें मिल रही हैं तड़प उठते हैं अक्सर वो भी सुन कर अब आहों को पनाहें मिल रही हैं तिरी मंज़िल है बद-तर बुत-कदों से ख़ुसूसन ख़ान-क़ाहें मिल रही हैं सबक़ लेता हूँ हर ठोकर से अपनी मुझे यूँ दर्स-गाहें मिल रही हैं बनी जाती हैं मेहराब-ए-मोहब्बत जो अंगड़ाई में बाहें मल रही हैं मुझे कुछ शोर-ए-नाक़ूस-ओ-अज़ाँ से तिरे मिलने की राहें मिल रही हैं मिलेंगे दिल से इक दिन वो 'रियाज़ी' अभी उन से निगाहें मिल रही हैं