मेरी ज़िंदगी का है इंहिसार गुल-ओ-समन के निखार पर मैं चमन में चाहे जहाँ रहूँ मेरा हक़ है फ़स्ल-ए-बहार पर है जुनूँ भी चाक-ए-क़बा भी है वही क़ैद-ओ-बंद की सख़्तियाँ है ज़माने भर के सितम रवा मिरी एक ज़ात-ए-फ़िगार पर मिरा बाग़ ख़ार-ए-निगाह-ए-शब मिरा शहर सब की नज़र में है जो बला चली तो ठहर गई इसी एक उजड़े दयार पर रही वक़्फ़-ए-ग़म मिरी ज़िंदगी मगर एक बात की है ख़ुशी कि मिरी हयात का क़ाफ़िला चला सम्त-ए-जल्वा-ए-यार पर मिरा दिल उदास है 'शाद' ज़ाग़-ओ-ज़ग़न के शोर के दरमियाँ मिरी आँख चश्मा-ए-ख़ूँ हुई है चमन की हालत-ए-ज़ार पर