मोहब्बत करने वालों का यही नाम-ओ-निशाँ होगा जहाँ वो सर-निगूँ होंगे वहीं पे आस्ताँ होगा मोहब्बत में अगर ज़ाहिर मिरा राज़-ए-निहाँ होगा मेरे पीछे यक़ीनन उन का कोई राज़दाँ होगा ज़मीं भी बदली होगी और बदला आसमाँ होगा न गर्द-ए-कारवाँ होगी न शोर-ए-कारवाँ होगा हर इक महशर में होगा अपने ही आ'माल का हामिल ज़मीं वालों की नज़रों में अजब ये इक समाँ होगा मोहब्बत में हमेशा राज़ तश्त-अज़-बाम ही होगा कभी जासूस याँ होगा कभी जासूस वाँ होगा अगर गुज़रेगी मेरी ज़िंदगी शहर-ए-मदीना में इबादत के लिए ऐ 'शाद' उन का आस्ताँ होगा