मिल के इक बार उसे याद नहीं होने के दिल के उजड़े नगर आबाद नहीं होने के अब नए ज़ुल्म तो ईजाद नहीं होने के साहिबा हम कोई फ़रियाद नहीं होने के सच्चे उश्शाक़ तो नापैद हुए दुनिया में अब कोई शीरीं-ओ-फ़रहाद नहीं होने के दिल में ठानी है भुला दें तुम्हें धीरे धीरे और इस इश्क़ में बर्बाद नहीं होने के एक वा'दे ने यूँ पा-बस्ता किया है हम को अब किसी तौर भी आज़ाद नहीं होने के हम ने हर हाल में जीने की क़सम खाई है हम कभी ज़ीस्त में नाशाद नहीं होने के एक कम-ज़र्फ़ से क्या ज़र्फ़ की उमीद करें हैं जो बौने कभी शमशाद नहीं होने के