मिला मिला के नज़र मुस्कुराए जाते हैं वो चश्म-ए-मस्त का जादू जगाए जाते हैं हम अपनी मश्क़-ए-तसव्वुर की दस्त-गीरी से नक़ाब रुख़ से किसी के उठाए जाते हैं रक़ीब क्या सितम-ए-ना-रवा कि सह न सके किसी की बज़्म में हम क्यों बुलाए जाते हैं किसी के नाज़ की तस्वीर खिंचती जाती है सर-ए-नियाज़ हम अपना झुकाए जाते हैं वो भूले जाते हैं तर्ज़-ए-जफ़ा-ए-बे-जा को हम अपना ज़ोर-ए-वफ़ा आज़माए जाते हैं हमारा क़िस्सा हमारा समझ के कब सुनते बदल के नाम हम उन को सुनाए जाते हैं वो अपने तज़किरा-ए-हुस्न से हैं ख़ुश 'बेदिल' उन्हें ग़ज़ल पे ग़ज़ल हम सुनाए जाते हैं