साक़ी फिर आया साग़र-ए-सहबा लिए हुए या मेरी ज़िंदगी का सहारा लिए हुए आँखों में हैं वो चश्मा-ए-सहबा लिए हुए या आब-ए-ज़ि़ंदगी के हैं दरिया लिए हुए बैठा हूँ इंतिज़ार में इक हीला-जू के फिर रग-रग में इज़्तिराब की दुनिया लिए हुए तज्दीद-ए-वा'दा फिर हुई तम्हीद-ए-इज़्तिराब फिर ख़िरमन-ए-उमीद है शो'ला लिए हुए नज़्र-ए-निगाह-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना हो गया आया था शैख़ ख़िर्क़ा-ए-तक़्वा लिए हुए मेरा सुकूत मतलब-ए-बे-लफ़्ज़ हो तो हो मैं आऊँ और अर्ज़-ए-तमन्ना लिए हुए इस तरह उस की बज़्म से दिल ले चला हूँ मैं जिस तरह कोई जाए जनाज़ा लिए हुए फिर कर रहा हूँ ग़ौर वजूहात-ए-इश्क़ पर उस पैकर-ए-जमाल का नक़्शा लिए हुए ज़ालिम का हर सितम है तवज्जोह की इक दलील उस की जफ़ा वफ़ा का है नक़्शा लिए हुए फिर जा रहा है 'बेदिल'-ए-अफ़्सुर्दा देखिए ग़ारत-गर-ए-सुकूँ की तमन्ना लिए हुए