मिलने में मुझ को आप से क्या इज्तिनाब था पर क्या करें कि शहर का मौसम ख़राब था जब जा चुके तमाम ही रिश्तों के क़ाफ़िले मैं था तुम्हारी याद का ताज़ा गुलाब था सब लोग आ के अपनी कहानी सुना गए मैं कुछ न कह सका मुझे कितना हिजाब था दुनिया के सारे राज़ से वाक़िफ़ तो था मगर वो पढ़ सका न मुझ को मैं ऐसी किताब था मुट्ठी में उस की बंद थीं मेरी ज़रूरतें मैं था महज़ सवाल वो मेरा जवाब था मैं ने कहीं 'नसीम' को देखा था राह में चेहरा था उस का ज़र्द तो हुलिया ख़राब था