उठा शो'ला सा क़ल्ब-ए-ना-तवाँ से हवा आई कभी जो शहर-ए-जाँ से हमारी सम्त भी चश्म-ए-इनायत तिरी ख़ातिर बने हैं नीम-जाँ से शिकायत उस से है जिस पर फ़िदा हूँ मुझे शिकवा नहीं सारे जहाँ से निगाहों से अदा करते हो मतलब कहाँ कहते हो कुछ अपनी ज़बाँ से तुम्हीं थे या वो परछाईं तुम्हारी अभी बिजली सी जो गुज़री यहाँ से कोई सानी नहीं उस का जहाँ में मुझे निस्बत है जिस सर्व-ए-रवाँ से मुसीबत-आश्ना यूँ ही नहीं मैं जुदा मैं भी हुई हूँ कारवाँ से उदासी किस लिए फैली हुई है उठा है कौन आख़िर दरमियाँ से इधर आ आश्ना-ए-राज़-ए-फ़ितरत सदा आती है दश्त-ए-बे-कराँ से