मिरा दयार शनासा-ए-रंग-ओ-नूर नहीं अगरचे शम्स-ओ-क़मर इस नगर से दूर नहीं जमाल-ओ-पैकर-ओ-अंदाम की घटाएँ हैं किसी भी दिल पे तजल्ली-ए-कोह-ए-तूर नहीं ख़ुदा से इश्क़ की पहली हसीं निशानी है वो इक नमाज़ कि जिस में ख़याल-ए-हूर नहीं हिजाब-ए-महमिल-ए-लैला को तू उठा न सका कि तेरी आँख में दीदार का शुऊ'र नहीं निसाब-ए-नाब-ए-हुसैनी मिरी तमन्ना है ख़िताब-ए-वाइ'ज़-ओ-दरवेश में सुरूर नहीं कुशा-ए-राज़ अज़ा-ए-हुसैन कैसे हो तुम्हारे क़ल्ब में रासिख़ मिरा ज़बूर नहीं ग़म-ए-हुसैन में रोता है ला नहीं कहता वो जिस का जिस्म अदू के तबर से चूर नहीं चराग़ बन के अँधेरी रुतों में जलता हूँ सिवाए इस के मिरा और कुछ क़ुसूर नहीं तुलू-ए-नूर है 'नक़्क़ाश' शे'र-ए-आगाही ऐ वा-ए-बख़्त इसी शे'र को ज़ुहूर नहीं