मिरा दिया है मुक़ाबिल चराग़-ए-शाही के मैं जानता हूँ कि आसार हैं तबाही के सज़ा सुनाई गई पेशतर गवाही के तो क्या सुबूत करूँ पेश बे-गुनाही के किसे है होश कि ये जश्न है कि मातम है मुज़ाकरात हैं जलसे की सरबराही के कोई तो झाँके ज़रा दिन की आस्तीनों में मिलेंगे नाग कई रात की सियाही के हमारे घर हैं मोअ'त्तर ग़मों की धूनी से कि इन घरों पे हैं असरात ख़ानक़ाही के