मिरे चेहरे से ग़म आँखों से हैरानी न जाएगी यही सूरत रहेगी और पहचानी न जाएगी तुम्हारा झूट मेरे सच का क़ातिल है मगर दुनिया तुम्हारी मान जाएगी मिरी मानी न जाएगी अना सर चढ़ गई है इक बगूले की तरह ऐसी कि सर जाएगा इक दिन ख़ू-ए-उर्यानी न जाएगी तुम्हारे पास ज़ंजीरें हमारे दस्त ओ पा ज़ख़्मी लहू ज़िंदा है जब तक अपनी मन-मानी न जाएगी मिरा दुख भी नविश्ता है मिरी तक़दीर का शायद जो मैं गुल हूँ तो मेरी चाक-दामानी न जाएगी सबा आवारा फिरती है नवाह-ए-जाँ में बरसों से ये वो ख़ित्ता है जिस से उस की वीरानी न जाएगी क़लम दिल में डुबो कर भी 'मुजीबी' कुछ न हाथ आया ये वो एहसास है जिस की पशेमानी न जाएगी