मिरे ही दिल से तू पूछ कितनी तिरी अदाओं में ज़िंदगी है तिरा सितम भी करम है मुझ पर तिरी जफ़ाओं में ज़िंदगी है जो तेरे जलवोें से है फ़रोज़ाँ जो तेरी निकहत से झूमती है जो तेरे नग़्मों से गूँज उट्ठे उन्हीं फ़ज़ाओं में ज़िंदगी है इन्हीं से रंगीं है बज़्म-ए-हस्ती इन्हीं से निखर है हुस्न-ए-दुनिया जो चाहें समझें जहान वाले मिरी ख़ताओं में ज़िंदगी है ख़ुशी में सर धुनने वालो सुन लो कि कितना शीरीं है नग़्मा-ए-ग़म जो टूटे दिल से सदाएँ उट्ठी उन्हीं सदाओं में ज़िंदगी है रची है सरगोशियाँ सी जिन में हमारे राज़-ओ-नियाज़ की ही जो हुस्न-ओ-उलफ़त से ही बसी है उन्हीं हवाओं में ज़िंदगी है ग़ुरूर कितना भी तुम को अपने हो ज़ेहन-ओ-बाज़ू की क़ुव्वतों पर ज़रा तो बे-कस दिलों से पूछो कि क्या दुआओं में ज़िंदगी है तिरी हसीं का हो साज़ बजता कि आबशारों का हो तरन्नुम हो रक़्स-ए-गुल या नवा-ए-बुलबुल इन्हीं नवाओं में ज़िंदगी है जो बे-नियाज़-ए-ज़र-ए-ज़मीं है जो दिल की दौलत से ही ग़नी है 'हबीब' इन को समझ न कमतर इन्हीं अदाओं में ज़िंदगी है